Mirror 365 - NEWS THAT MATTERS

Dear Friends, Mirror365 launches new logo animation for its web identity. Please view, LIKE and share. Best Regards www.mirror365.com

Posted by Surinder Verma on Wednesday, June 17, 2020

उपराष्ट्रपति के भाषण का मूलपाठ – संसद में हिसार से आये किसानों से भेंट

0
143

उपराष्ट्रपति के भाषण का मूलपाठ – संसद में हिसार से आये किसानों से भेंट

Posted On: 12 JAN 2024 5:37PM by PIB Delhi

हरियाणा से आये सभी किसान भाईयों को राम-राम,

भारत की आत्मा गांव में है और गांव बदल गया तो देश बदल गया, और यह पहली बार हुआ है कि जनजाति की महिला भारत की राष्ट्रपति है, द्रौपदी मुर्मू जी, भारत की पहली नागरिक है।

संसद की यह नई बिल्डिंग ढाई साल में बनी है। ढाई साल में बिल्डिंग ही नहीं यह सब कुछ ढाई साल में बना है और यह कोविड के दौरान बना है। देश में सड़क खूब  हो गई ना देखते ही देखते और हर एक के हाथ में मोबाइल हो गया।

मुझे चार बात कहनी है आपसे।

दुनिया में सबसे बड़ा व्यापार कृषि उत्पादन का है। गेहूं, बाजरा, चावल, दाल, सब्जी, दूध सब कृषि का है और किसान इनको पैदा करता है और मेहनत करके करता है, पसीना निकाल कर करता है। सरकार ने किसान के लिए एक पीएम किसान सम्मान दिया है साल में तीन बार  ₹2000 आते हैं।

पर यह व्यापार है ना इसमें किसन की दिलचस्पी नहीं है,… होनी चाहिए।

किसान की मंडी के अंदर दुकान भी होनी चाहिए, किसान के बच्चों को व्यापार में पड़ना चाहिए।

दूध की बात देखो, हम दूध से ज्यादा से ज्यादा दही बना लेते हैं, और ज़ोर लगाएं तो छाछ बना लेते हैं। ना पनीर बनाने की सोचते है ना ही और आगे की बात सोचते है। आगे की बात सोचने का टाइम आ गया है।

आपको सोचना चाहिए। आज के दिन खूब पढ़े-लिखे लोग मोटे-मोटे लोग करोड़ों की तन्ख्वाह जिनको मिलती है, वह अपनी नौकरी छोड़कर यह व्यापार कर रहे हैं – सब्जी का करते हैं, दूध का करते हैं।

हमें ऐसा लगता है कि छोरा पढ़ लिखकर यह व्यापार क्यों करें? उसे नौकरी करनी चाहिए। व्यापार में बहुत दम है। यह संकल्प ले लेना चाहिए कि अपने बच्चे पढ़ लिख के और भी काम करें, पर कृषि के उत्पादन से व्यापार जरूर करें। किसान बेचने वाला होना चाहिए। एक दो बार बेचे मंडी में जाकर और आगे भी बढ़ना चाहिए।

दूसरी बात , किस का जो उत्पादन है उसमें वैल्यू ऐड करनी चाइए ।

दूध को पनीर कौन बनाएगा, छाछ को करके बचेगा कौन, आगे दूध की पैकेजिंग कौन करेगा, और यह बिक रहे हैं। शहर में पैकेट दूध पैकेट दही, दही में पनीर भी डाल देंगे, दही को मीठा भी कर देंगे। कई चीज डाल दीं, हम क्यों नहीं करते हैं? यह करना बहुत आसान है।

सरकार की बहुत नीतियां है 10 किसान एक साथ मिल जाएं ना तो पैकेजिंग वगैरह बहुत आसान हो जाए। अपने बच्चों को इन बातों में लगाओ।

तीसरी बात, सरसों अपना है, गेहूं अपना है, बाज़रा अपना है। सब चीज अपनी हैं पर सरसों का तेल हम नहीं निकालते हैं, इसका तेल कोई और निकालता है। उन्हें भी निकालने दो पर हम क्यों नहीं निकालते हैं। आजकल तो बहुत अच्छी-अच्छी व्यवस्था है।

जो नई चीज बन रही है गेहूं की वह हम बनाते ही नहीं है। यह सब चीज में हमें पड़ना चाहिए। पूरी दुनिया आज के दिन एक चीज सोचती है कि कोई कितना भी बड़ा हो, खाता पीता हो, बड़ा आदमी हो वह कहता है मुझे दूध सही मिल जाए। वह सही दूध के लिए तरसते हैं और सब्जी मुझे बिना पेस्टिसाइड के मिल जाए।

यह तो हम ही करते हैं पर फिर भी हमारे लोग सब्जी मार्केट से लेते हैं। ऐसा नहीं होना चाहिए एक आंदोलन चलाओ कि गांव में सब्जी बाहर से नहीं आएगी, गांव की सब्जी बाहर जाएगी। फल गांवों मे ही होंगे, हर घर में तीन-चार नींबू के पौधे हों तो कितना आराम हो जाए। थोड़ी सी कोशिश करनी पड़ेगी।

मेरे कहने का मतलब यह है पढ़े-लिखें बच्चों को आज के दिन जो करोड़ों का धंधा है, अरबो का धंधा है इसमें जुड़ना चाहिए।  बड़े-बड़े अधिकारी आईएएस अधिकारी बड़े-बड़े लोग आईआईटी के आईआईएम के नौकरी छोड़कर यह काम कर रहे हैं। गुड़गांव में देख लो। दूध का व्यापार करने के लिए दो-तीन करोड़ के पैकेज छोड़ कर आए हैं क्योंकि उससे उन्हें ज्यादा फायदा मिल रहा है। तो एक तो यह बात चालू करो।

और धंधों में यह देखना पड़ता है कि कोयला कहीं मिलता है, लोहा कहीं मिलता है। अपने धंधे में तो सब अपने ही पास है, आसपास है। इकट्ठा करना पड़ता है तो सब आसपास में ही है दूर नहीं जाना पड़ता।

सरकार की जो नीतियां है उसकी पूरी जानकारी लो। पूरे देश में कभी देखता हूं ज़यादा टमाटर होगा तो उसे सड़क पर फेंक देते हैं। अरे टमाटर ज्यादा हो गया तो उसका उपयोग करो। टमाटर की चटनी सड़क पर थोड़ी बनेगी। हम अगर 10 लोग मिल जाएंगे… टमाटर सस्ता मिल रहा है तो भी उसका फायदा उठाएंगे यह सोचने वाली बात है।

और एक तो बहुत बढ़िया काम हो गया है। छोरा छोरी में कोई फर्क नहीं बचा है। जो थोड़ा एक फर्क है यह है की छोरी थोड़ी ज्यादा आगे पहुंच गई है।

पर अब एक काम हो गया है लोकसभा में और विधानसभा में एक तिहाई महिला होंगी, मतलब एक तिहाई मेंबर ऑफ पार्लियामेंट महिला होंगी। ज्यादा अहम् बात यह होगी कि वह जनरल सीट में भी लड़ेंगी और आरक्षित पर भी। यह बहुत बड़ा बदलाव आया है। यह पहली बार हो रहा है, कोशिश तो 30 साल में बहुत हुई पर वह कोशिश पार नहीं पड़ी। सितंबर के महीने में यह पार हो गई।

गांव में दुकानदार सबसे होशियार आदमी होता है। वह अपने छोरे को स्कूल भेजता है और आने के बाद कहता है दुकान पर बैठ जा। वह शुरू से ही सीख जाता है उसे कोई डिग्री की दरकार जरूरत नहीं है।

यही खेती-बाड़ी का है। यह अपने घर की बात है अगर उसके पहले ही मन में आ जाएगा कि भाई दूध का मतलब आइसक्रीम, दूध का मतलब पनीर तो समझ आ जाएगी तो वह करना भी चाहेगा बल्कि और चार कदम आगे जाएगा। यह बदलाव आ रहा है।

और यह बदलाव सिर्फ देश में नहीं आ रहा पूरी दुनिया में आ रहा है कि हिंदुस्तान बदल गया है।

हमने तो देखा है पहले की सड़कों के का क्या हाल था। कनेक्टिविटी का क्या हाल था। मोबाइल का क्या हाल था। अब सब चीज बदल गई है।

जो मोबाइल से काम ले रहे हैं जो मोबाइल 98% बाहर बनता था, अब यहीं बनने लगा है और हम बाहर भी भेजते हैं। यह बदलाव आ गया है।  रेलगाड़ी देखे हैं तो पता लगता है ना कि बदलाव आ गया है।

तो बात यह है कि अपने बच्चों पर थोड़ा ध्यान दो।

गांव में जो स्कूल है ना उन स्कूलों का ग्राउंड बड़ा है बिल्डिंग भी ठीक है मास्टर को तनख्वाह भी ठीक मिलती है पर हम अपने बच्चों को पब्लिक स्कूल में भेजते हैं। थोड़ी सी तो जगह है पब्लिक स्कूल में।  बच्चों के टाई बांधने का घर पर लेने के लिए बस भेज देंगे। स्कूल पढ़ने जाते हैं तो स्कूल में मास्टर की इज्जत करें, मास्टर को गांव के लोग समझा सकते हैं की बच्चों को पढ़ाई के साथ-साथ खेल भी मिलेगा, मिड डे मिल भी मिलेगी।

और हरियाणा के मामले में तो एक और बड़ी खास बात है। शायद देश में सबसे ज्यादा हरियाणा है, अखाड़ा। मतलब गुरुकुल जैसे हैं अखाड़े। हरियाणा के अखाड़े के लोग मेरे से मिले थे मैं तो उनसे मिलकर दंग रह गया।  मैंने कहा बच्चों को दूध कहां से मिलता है तो वह कहते हैं कि गांव के लोग देते हैं खाने पीने की व्यवस्था कैसे होती है तो बोले की सामूहिक रूप से होती है। बच्चे खूब एक्सरसाइज करते हैं इसका मतलब बच्चों में कोई बुरी आदत नहीं आती है। बिल्कुल बुरी आदत नहीं आती है तो मैंने भी सोचा है कि अखाड़ों के लिए एक ढंग से संयोजित राष्ट्रीयस्तर पर कार्यक्रम करें। क्योंकि अपनी परंपरा बहुत मजबूत है। अखाड़े का मतलब अपना जो चरित्र है यह सोने का रहता है, अखाड़े में जाने वाला छोरा कभी यह ड्रग कभी नहीं लेता। उसका ध्यान पॉजिटिव रहता है।

और गांव में थोड़ा भाईचारा बढ़ाओ। एक बहुत पुरानी कहावत है:

भाई के करने का गम नहीं,…. अकड़ नुकली चाहिये

तो भाईचारा ज्यादा बढ़ाओ। शरीर का हर एक अंग जरूरी है, कहीं भी थोड़ी चोट लग जाए तो दिमाग विचलित हो जाता है सीने में दर्द होता है पूरी परेशानी हो जाती है। तो समाज को बांट कोई नहीं सका है समाज एक है और यही आज देश की परंपरा है। समाज को जाति में बाट दो और कोई तरीके से बांट दो वह बात खत्म हो गई है। समाज वही स्वस्थ रहता है जहां शरीर स्वस्थ रहता है और शरीर स्वस्थ तभी होता है जब दिमाग ठीक गला ठीक रहे, दिल ठीक रहे लीवर ठीक रहे पांव भी ठीक रहे।

एक छोटी सी कहावत बताऊं आपको। एक बुड्ढी औररत अंधी थी , उसे दिखता नहीं था और बीमार भी थी। दूसरी समस्या पोता है, ना तो तो उसकी शादी हो रही है ना उसकी नौकरी लग रही है।

राम जी सामने आ गए। वह बोले माँ एक बात मांग ले। तो अब उनके सामने बड़ी दिक्कत आ गई की क्या आंख मांगे ताकि देख सके, अगर आंख मांगेगी तो बीमार भी रहेगी। पोते की नौकरी भी नहीं लगेगी और पोते की शादी भी नहीं होगी और खुद को ठीक होना मांग ले तो और पोते की नौकरी मांग ले तो शादी नहीं होगी। ताई बहुत होशियार थी वह बोली एक ही वरदान मांगती हूं। सोने की थाली  में पोते को हंसता खेलता दिखा दे। तो सोने की थाली का मतलब धन दौलत खूब, पोतो मतलब शादी हो गई, हंसता खेलता दिखा दे मतलब आंख भी आ गई स्वस्थ भी हो गई सब चीज एक साथ ले ली।

आज के दिन जो यह राज है… यह कहना किसान का बेटा यहां पर है। सोचा है क्या किसान का बेटा यहां पर है और जनजाति की महिला राष्ट्रपति है और अन्य पिछड़ा वर्ग का प्रधानमंत्री है और मेरा लाग-लपेट सिर्फ एक ही है कि भारत एक बहुत बड़ा देश हो।  अभी काफी ऊपर आ गया है। 2047 में दुनिया के शीर्ष पर होगा। पहले हम सब विदेश में देखे थे कि क्या-क्या एयरपोर्ट है, कई तरह की रेलगाड़ी है, बहुत अच्छी-अच्छी सड़क है।

सभी को नए साल की बहुत-बहुत शुभकामनाएं और मैं एक कार्यक्रम में गया वहां मैंने देखा जो सबसे महत्वपूर्ण है आप लोग वह पहली पंक्ति में नहीं बैठे थे तो मेरे मन में थोड़ी खटास आई कि जिनके लिए मैं आया हूं वह पीछे बैठे हैं।

भोजन के बाद उपराष्ट्रपति निवास देखने जाएं।

राम राम साब!