जालंधर.धान की पराली जलाने वाले किसान ये जान गए हैं कि उनके खेतों पर सेटेलाइट से नजर रखी जा रही है। उन्होंने सेटेलाइट को चकमा देने का तरीका भी खोज लिया है। वे खेतों को आग लगाते हैं। पानी छोड़ देते हैं और ट्रैक्टर से उसे जोत देते हैं। दिनभर की पराली जलने की घटनाओं के सेटेलाइट से चित्र रात 8 बजे के बाद आते हैं। टीम रात को मौके का दौरा नहीं करती। अगले दिन सबूत मिटा दिए जाते हैं।रविवार रात तक सेटेलाइट से आग लगने के 268 मामलों में महज 27 का ही प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड की टीमें चालान काट पाईं। बाकी सबूतों के अभाव के चलते छूट गए। यानी महज 10 प्रतिशत पर ही एक्शन हो सका है।
पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड की टीमेें करेंगी गांवों का दौरा :
किसान खेत को कई हिस्सों में बांटकर आग लगाते हैं। कुछ मिनट में खेत आग की लपटों में बदल जाता है। ऐसे में मजदूरों के बच्चों तक की जान खतरे में डाल दी जाती है। 70 फीसदी पराली जलने पर पानी छोड़कर ट्रैक्टर से खेत जोत दिया जाता है। किसान कहते हैं कि उन्होंने तो आग लगाई ही नहीं। पीपीसीबी के वरिष्ठ पर्यावरण इंजीनियर अरुण कक्कड़ ने बताया कि मंगलवार को टीमें इलाके का दौरा करेंगी।
दोपहर को शहर में प्रदूषण का स्तर 316 पहुंचा :
पराली जलाने से शहर में प्रदूषण लेवल खतरे के निशान से ऊपर है। दोपहर 12 बजे पीएम 2.5 का स्तर 316 था। जबकि पूरे दिन में एयर क्वालिटी इंडेक्स 181 अंक रहा। इससे खांसी और छींकों की समस्या भी बढ़ गई है। सोमवार को लांबड़ा में सरेआम किसान मजदूर और उनके बच्चों की जान जोखिम में डालते हुए दिखे।
मजदूरों के बच्चे खेत में पड़ी पराली को आग लगा रहे थे। आग लगते ही खेत में पड़ी सूखी पराली जलने लगती है और पूरा खेत आग और धुएं के गुब्बार में बदल जाता है। ऐसी स्थिति में 8-9 साल के बच्चे आग की लपटों में घिर सकते थे।
1 किलो जले तो 2 किलो जहरीली गैस निकलती है :
एक्सपर्ट्स के मुताबिक 1 किलो पराली जलने से 2 किलो जहरीली गैस निकलती है। पराली जलाने का असर तापमान गिरने और धुंध के दौरान समोग के रूप में सामने आएगा। 100 के नीचे इंडेक्स तो ही अच्छा…एयर क्वालिटी इंडेक्स 100 से नीचे हो तो उसे सामान्य और ज्यादा होने पर सांस लेने के लिए अच्छा नहीं माना जाता। ऐसी हवा में सांस की बीमारियां होने का खतरा काफी बढ़ जाता है।
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