चंडीगढ़, सुनीता शास्त्री। राष्ट्रपति अवार्ड और हरियाणा साहित्य अकादमी अवार्ड से नवाजे चुके , विभिन्न पत्रिकाओं और अखबारों में पांच हजार से ज्यादा लेख प्रकाशित व अब तक 30 से ज्यादा पुस्तकें लिख चुके आईपीएस व लेखक राजवीर जैसवाल ने रू ब रू में-सेशन में गांव की खुशबू ,साहित्य की रसिकता और जीवन की सच्चाइयों को बखूबी बयां कियाविंटर नेशनल थियेटर फेस्टिवल के सातवें दिन रूबरू सेशंस में बाल भवन के प्रांगण में पूर्व आईपीएस व प्रख्यात लेखक राजवीर जैसवाल ने युवा कलाकारों से सवाल-जवाब का एक अविस्मरणीय दौर चलाया। राजवीर जी के मुताबिक उनके पिताजी उर्दू के अच्छे जानकर थे जिस वजह से उनका साहित्य और लेखन की तरफ झुकाव रहा. वह भले ही उर्दू लिखना न जानते हो पर उर्दू के अल्फाजो की अच्छी समझ उन्हें अपने पिता की बदौलत ही मिली. राजीव जी लेखक के साथ साथ एक अच्छे शायर, कवि, ट्रेवलर और गायक भी है। हरियाणा के आई.जी और अम्बाला के कमिश्नर जैसे प्रमुख पदों पर अपनी सेवा दे चुके बहुमिखी प्रतिभा के धनि, आज की शिक्षा प्रणाली से नाखुश दिखाई दिए. उन्होंने कहा कि आजकल के अध्यापक विद्यार्थियों को रीडिंग राइटिंग से ज्यादा नम्बर लाने के लिए प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार करते ज्यादा दिखाई देते है जो उनके जमाने में बिलकुल नहीं था. राष्ट्रपति अवार्ड और हरियाणा साहित्य अकादमी अवार्ड से नवाजे चुके राजवीर जी के विभिन्न पत्रिकाओं और अखबारों में पांच हजार से ज्यादा लेख प्रकाशित हो चके है। अब तक 30 से ज्यादा पुस्तकें लिख चुके राजवीर जी के लिखने के सफर की शुरुआत 1987 में ‘ ह्यूमर ऑफ हरियाणा’ से लेखन से शुरू हुआ यह सरकार बीबीसी में प्रकाशन तक जा पहुंचा जिसका वह सारा श्रेय अपनी सातवी कक्षा की हिंदी की अध्यापिका को देते है. जिन्होंने उन्हें एक गंभीर विषय पर लिखने का कार्य दिया। अपनी जिनदगी के में अनुशासन के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि उन्होंने अनुशाशन दिग्गज लेखक खुशवंत सिंह से सीखा. क्योंकि उन्हें अपने दिल्ली में कार्यकाल के दौरान ज्यादातर समय खुशवंत जी के सानिध्य में बिताने का मौका मिलता था। अपनी चर्चित किताब ‘अंतागाँव’ जिसे वह अपनी एक चौथाई आत्मकथा भी कहते है में उन्होंने बचपन में अपनी खेतों में बिताई जिंदगी से लेकर आम के बगीचों में बिताई जिन्दगी को बखूबी कलम से कागजज़पर उतारा है. जो उनकी लिखी पुस्तकों में से उनके दिल के सबसे करीब है.।राजवीर ने अपने फिल्मो के शौक से जुड़े किस्से भी जगजाहिर करते हुए बताया कि वह दिलीप कुमार से बहुत प्रभावित रहे. दिलीप साहब से उनके लगाव की शुरुआत बचपन में ही हो गयी थी जब उनके पिता उन्हें दिलीप साब के ही अंदाजज़में देवदास फिल्म के डायलाग सुनाया करते थे. दिलीप साब से जुडी अपनी यादों को साझा करते हुए उन्होंने कहा कि जब वह छात्र थे तो एक बार दिलीप साब को की मशक्कत से मिलने के बाद उन्होंने उत्साहित होकर उनके पैरो को छू लिये था. बरसों बाद उन्हें दिलीप जी के साथ चंद घंटे बिताने का समय मिला. उस समय को राजवीर जी अपने जीवन के सुनहरे अनुभवों में से एक मानते है. इसी मुलाकात का ही नतीजा रहा कि उन्होंने अपनी अगली पुस्तक ‘खजुराहो’ दिलीप जी को समर्पित की. युवाओ को टाइम मैनेजमेंट की टिप्स देते हुए उन्होंने कहा कि निरंतर अभ्यास से व्यक्ति की ‘बायोरिदम’ बन जाती है जिससे उसे टाइम मैनेज करना आसान हो जाता है. राजवीर जी ने खुशवंत सिंह और कवी गोपालदास नीरज जी से जुड़ी अपनी तमाम यादें युवा दर्शकों से साझा की. साथ ही उन्होंने बताया कि दिलीप साब के अलावा खय्याम , मदन मोहन और सलिल चौधरी उनके पसंदीदा है और उनके काम से ही वह निरंतर प्रेरणा पाते रहते है। आज इनसे यह सब संवाद साहित्य और ज्योतिष के ज्ञाता मदन सपाटू ने मनोरंजक ढंग से पेश किया।