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Posted by Surinder Verma on Wednesday, June 17, 2020

हरियाणा के राज्यपाल श्री बंडारू दत्तात्रेय ने श्री गुरु तेग बहादुर जी के शहीदी दिवस पर उन्हें श्रद्धापूर्वक याद करते हुए कहा कि श्री गुरु तेग बहादुर जी शहादत की इतिहास में कोई बराबरी नहीं है।

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चण्डीगढ़, 23 नवंबर। हरियाणा के राज्यपाल श्री बंडारू दत्तात्रेय ने श्री गुरु तेग बहादुर जी के शहीदी दिवस पर उन्हें श्रद्धापूर्वक याद करते हुए कहा कि श्री गुरु तेग बहादुर जी शहादत की इतिहास में कोई बराबरी नहीं है। उन्होंने धर्म, मातृभूमि और जनता के अधिकारों की रक्षा के लिए सर्वस्व न्यौछावर किया इसलिए उन्हें ‘‘हिंद दी चादर’’ का ताज पहनाया गया है।
श्री दत्तात्रेय ने कहा कि गुरु परंपरा के अनुरूप ही श्री गुरु तेग बहादुर ने धर्म व देश की रक्षा के लिए आवाज बुलंद की और सर्वोच्च बलिदान दिया। उनके शहीदी दिवस पर पूरा देश उन्हें नमन कर रहा है। देश आज आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। श्री गुरु तेग बहादुर जी ने 17वीं शताब्दी में ही धर्म व देश की रक्षा के लिए शहादत देकर प्रत्येक देशवासी के दिलों-दिमाग में निडरता से आजाद जीवन जीने का बीज बो दिया था।
उन्होंने कहा कि 1665 में तत्कालीन शासक औरंगजेब ने गुरु तेग बहादुर व उनके तीन शिष्यों भाई मतिदास, भाई दयालदास तथा भाई सती दास को बंदी बनाया गया। जेल में भी काजी ने गुरु तेग बहादुर जी को प्रस्ताव दिया कि आप इस्लाम स्वीकार करके ही अपनी जान बचा सकते हैं, नहीं तो आपका सिर कलम कर दिया जाएगा। उस समय ध्यानरत गुरू जी ने सिर हिलाकर इस्लाम स्वीकार करने से इन्कार कर दिया। जब यह खबर औरंगजेब तक पहुंची तो वह आग बबूला हो गया। गुरु तेग बहादुर को डराने व इस्लाम स्वीकार करवाने के लिए उनके तीनों शिष्यों भाई मतिदास, भाई दयाल दास तथा भाई सती दास को उनकी आंखों के सामने अलग-अलग तरीके से मार दिया गया और कहा कि उनका भी यही हाल होने वाला है लेकिन गुरु तेग बहादुर अपने वचन से टस से मस नहीं हुए। उन्होंने श्रीमद्भागवत गीता के श्लोक –
श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्।
स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः।
से प्रेरणा लेकर धर्म की रक्षा के लिए कहा कि मैं सिख हूँ अौर सिख ही रहुंगा। इसके बाद 1675 में आततायी शासक औरंगजेब ने दिल्ली के चांदनी चौक में गुरु तेग बहादुर का शीश काट दिया। आज उसी स्थान पर गुरुद्वारा शीशगंज है, जो हिन्द-सिख भाईचारे का जीता-जागता प्रमाण है। शीश काटने के बाद उनका सिर भाई जैता अपने घर ले आए। भाई जैता ने श्री कीरतपुर साहिब जी पहुंचकर गोबिन्द राय को श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी का शीश समर्पित किया। इसके बाद आनंदपुर साहिब में दाह संस्कार किया गया।
श्री दत्तात्रेय ने कहा कि संसार को ऐसे बलिदानियों से प्रेरणा मिलती है, जिन्होंने जान दे दी परंतु सत्य-अहिंसा का मार्ग नहीं छोड़ा।
गुरू तेग बहादुर जी ने कहा था कि धर्म एक महजब नहीं, धर्म एक कर्तव्य है। आदर्श जीवन का रास्ता है। आज हमारे लिए गुरू जी की शिक्षाएं, त्याग, बलिदान एक धरोहर हैं। इस धरोहर को बचाने व सहज कर रखना ही गुरू जी के प्रति सच्ची श्रद्धा होगी।
उन्होंने कहा कि आज की युवा पीढ़ी को जरूरत है कि वे ऐसे युग-पुरूष श्री गुरू तेग बहादुर जी के जीवन चरित्र व बलिदान से प्रेरणा लेकर मानवीय एवं नैतिक मूल्यों के साथ जीवन में संस्कारों को ग्रहण कर आगे बढ़े जिससे देश फिर से विशेष गुरू कहलाएगा।