संगरूर । महान शहीद ऊधम सिंह के वारिसों ने सरकार तथा प्रशासन की ओर से वारिसों के प्रति दोहरे मापदंड अपनाने पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने सवाल उठाया कि एक तरफ जिला प्रशासन ने शहीद के पारिवारिक सदस्यों को वारिस होने के पहचान पत्र जारी किए हैं, दूसरी तरफ जब सूचना अधिकार कानून (आरटीआइ) के तहत शहीद ऊधम सिंह के वारिस होने की सूचना मांगी जाती है तो प्रशासन वारिस होने संबंधी अपना पल्ला झाड़ देता है।
सोमवार को शहीद ऊधम सिंह के पैतृक घर में एकत्र हुए उनके भांजों के बच्चे हरदियाल सिंह, शाम सिंह, मलकीत सिंह, गुरमीत सिंह व जीत सिंह आदि ने कहा कि शहीद के वारिसों को लेकर कई तरह की चर्चाएं चल रही हैं। इससे वे आहत व अपमानित महसूस कर रहे हैं। हरदियाल सिंह ने कहा कि शहीद ऊधम सिंह की चचेरी बहन आस कौर को तत्कालीन पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह (तत्कालीन मुख्यमंत्री) ने वारिस घोषित किया था।
1974 में आस कौर की गुहार को आधार बनाकर ज्ञानी जैल सिंह ने इंग्लैंड से शहीद की अस्थियां सुनाम में मंगवाई थीं। तब आस कौर की 250 रुपये प्रति माह पेंशन लगाई गई थी। अब प्रशासन से जब आरटीआइ के माध्यम से कोई शहीद के वारिस होने की जानकारी मांगता है तो प्रशासन जवाब में रिकॉर्ड नहीं होने व वारिस नहीं होने की सूचना देकर पल्ला झाड़ देता है।
उन्होंने कहा कि पंजाब के कई सीनियर आइएएस अधिकारी भी ङ्क्षहदू एक्ट का हवाला देकर उन्हें शहीद के चौथे दर्जे में वारिस मान चुके हैं। उन्होंने सरकार व प्रशासन से मांग की कि उन्हें रिकॉर्ड में वारिस घोषित किया जाए व दोहरा मापदंड न अपनाया जाए।