चंडीगढ़. बदलते लाइफस्टाइल से बीमारियां बढ़ रही हैं। जो लोग डायबिटीज, हाइपरटेंशन, हाई कॉलेस्ट्रॉल, मोटापा और खानपान का ध्यान नहीं रखते उनमें ब्रेन स्ट्रोक या हेमरेज होने का खतरा बढ़ जाता है। एेसे मरीजों को स्ट्रोक के लक्षण दिखने पर तुरंत ऐसे हॉस्पिटल ले जाना चाहिए, जहां 24 घंटे सीटी स्कैन की सुविधा हो।
न्यूरोलॉजी डिपार्टमेंट के डॉ. प्रो. धीरज खुराना ने बताया कि पीजीआई ने ब्रेन स्ट्रोक आने पर मरीज को तुरंत इलाज मुहैया करवाने के लिए दो हेल्पलाइन नंबर जारी किए हुए हैं। 70870-09500 नंबर ब्रेन स्ट्रोक हाेने पर न्यूरोलॉजी ऑन कॉल सुविधा के लिए है। अगर किसी मरीज को ब्रेन स्ट्रोक के लक्षणों का आभास हो तो इस नंबर पर कॉल करें। पीजीआई की इमरजेंसी में न्यूरोलॉजी डॉक्टर्स की टीम मरीज का इलाज करने के लिए रेडी हो जाती है। मरीज के आते ही सीटी स्केन कर उसे जो भी जरूरी इलाज की जरूरत होती है, उसे मिल जाता है। मरीज को टीपीए का इंजेक्शन मिल जाए तो उसके स्ट्रोक होने का खतरा 30 से 35 फीसदी कम हो जाता है। एक और नंबर 7087009697 है। यह नंबर न्यूरोलॉजी इमरजेंसी के लिए है।
न्यूरो के मरीजों को तुरंत इलाज मुहैया करवाया जाता है। टीपीए का इंजेक्शन 35 से 40 हजार रुपए का है। जीएमसीएच-32 और जीएमएसएच-16 में जरूरतमंद मरीजों को यह मुफ्त में लगाया जाता है। प्रो. धीरज खुराना ने बताया कि स्ट्रोक या लकवा एक ऐसी बीमारी है, जोकि ब्रेन में क्लॉट बनने की वजह से होती है या फिर मस्तिष्क की कोई ऑर्टरी फटने की वजह से होती है। लोगों को लक्षण पता हो और समय पर इलाज मिल जाए तो मरीज को ठीक किया जा सकता है। हर साल हमारे देश में 17 से 18 लाख लोगों को ब्रेन स्ट्रोक हो रहा है और इसमें 7 से 8 लाख बिना इलाज के ही दम तोड़ रहे हैं। समय से इलाज को पहुंचे हुए 50% मरीजों को पीजीआई में ठीक हो जाते हैं।
ब्रेन स्ट्रोक अौर हेमरेज स्ट्रोक :
स्ट्रोक के मरीजों के लिए पहले 4.5 घंटे के गोल्डन आवर्स बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। इस दौरान अगर मरीज हॉस्पिटल पहुंच जाए तो क्लॉट को डिजॉल्व करने के लिए टीपीए का इंजेक्शन देकर बचाया जा सकता है। भारत में बना इंजेक्शन 30-35 हजार का और जर्मन इंजेक्शन 60-70 हजार रुपए का होता है। पंजाब और हिमाचल प्रदेश में जहां-जहां इसके इलाज की सुविधा है वहां यह फ्री में लगाया जाता है, लेकिन चंडीगढ़ में यह सुविधा जीएमसीएच 32 अौर जीएमएसएच 16 में जरूरतमंद मरीजों के लिए मुफ्त उपलब्ध है। यहां आने वाले 60-70 फीसदी ऐसे मरीज होते हैं, जिनके पास पैसा नहीं होता। ऐसे में उन्हें समय पर इलाज नहीं मिल पाता।