चंडीगढ़ । आम आदमी पार्टी के विधायक सुखपाल खैहरा की विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी पर कई आप विधायकों की नजरें लग चुकी हैं। विधायकों ने नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी के लिए लॉबिंग भी शुरू कर दी है। पार्टी में खैहरा को लेकर चल रही प्रदेश प्रधान सांसद भगवंत मान की सियासी कूटनीति में भी खैहरा फंसते नजर आ रहे हैं। ड्रग्स तस्कर का साथ देने के मामले में अदालत द्वारा जारी खैहरा की गिरफ्तारी के आदेशों को लेकर आगामी दो दिनों में पार्टी की सियासत गर्मा सकती है।
विधानसभा चुनाव से पहले सूबे की सियासत में आम आदमी पार्टी के पक्ष में बने माहौल के बाद भी उम्मीद के विपरीत परिणाम आने पर आप नेताओं की सियासत सूबे में एक किनारे हो गई थी। चुनाव परिणाम आने के बाद पंजाब में आप को पंजाब के नेताओं द्वारा संचालित किए जाने का मुद्दा उठाने वाले खैहरा पहले नेता थे। पार्टी के तत्कालीन पंजाब कन्वीनर गुरप्रीत सिंह वडैच घुग्गी को हटाने पर भी खैहरा ने दिल्ली लीडरशिप का विरोध किया था।
खैहरा के विरोध के बाद भी भगवंत मान के हाथों पार्टी की कमान थमाकर पार्टी के राष्ट्रीय कन्वीनर अरविंद केजरीवाल ने एक तरह से पार्टी की कमान अपने हाथ में ही रखी थी। कुछ ही समय बाद नेता प्रतिपक्ष एडवोकेट एचएस फूलका ने अपना पद छोड़कर पार्टी की मुश्किलें बढ़ा दी थीं। इसके बाद कोई और विकल्प न होने और आप की सहयोगी लोक इंसाफ पार्टी के प्रमुख सिमरजीत सिंह बैंस की जुगलबंदी के चलते केजरीवाल ने खैहरा को नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी सौंप दी थी।
सुखपाल खैहरा को नेता प्रतिपक्ष बनाने के बाद से लगातार पार्टी के कुछ विधायकों द्वारा खैहरा की स्वकेन्द्रित राजनीति का अंदरखाते विरोध शुरू हो गया। समय के साथ इन विधायकों ने अपने सुर भी पार्टी के अंदर तेज करने शुरू कर दिए थे। हालांकि मान सही समय के इंतजार में थे। इसी बीच खैहरा के खिलाफ नशा तस्कर की मदद करने के मामले को लेकर अदालत ने गिरफ्तारी वारंट जारी कर दिए। इसके बाद अचानक खैहरा के खिलाफ आप विधायकों में लॉबिंग शुरू हो गई। भ्रष्टाचार व नशे के खिलाफ लड़ाई पार्टी का एजेंडा है। ऐसी स्थिति में खैहरा के साथ खड़ा होना उसके लिए आसान नहीं है।
यही वजह है कि खैहरा के खिलाफ लॉबिंग करने वाले विधायकों की नजरें आने वाले दो चार दिनों की सियासत पर टिकी हैं कि पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट खैहरा की याचिका पर क्या फैसला करता है। यही वजह है कि इस मामले पर अभी तक मान ने भी इतना ही कहा है कि वह खैहरा के साथ हैं और कानूनी राय ले रहे हैं। यानी उनकी राय भी अदालत की राय पर निर्भर है। देखना है कि खैहरा की अंदरखाते खिलाफत करने वाले विधायक खुले मंच पर कब तक आते हैं।
पार्टी अपनी नीति से समझौता नहीं करेगी : अरोड़ा
पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष अमन अरोड़ा स्पष्ट तौर पर कहते हैं कि पार्टी अपनी नशा विरोधी नीति के साथ खड़ी है। अपने सिद्धांतों से पार्टी किसी कीमत पर समझौता नहीं करेगी। फिर बात चाहे खैहरा की हो या फिर किसी और नेता की। मान के सुर में सुर में मिलाते हुए कहते हैं कि सब कुछ अदालत के फैसले पर निर्भर है। खैहरा की कुर्सी को लेकर पार्टी विधायकों में शीत युद्ध पर वे कहते हैं कि पार्टी में सभी के स्वतंत्र विचार हो सकते हैं। हमारी पार्टी पारदर्शी व्यवस्था के तहत चलती है, इसमें कोई बुराई नहीं हैं।